DGHS का पक्षपात: फिज़ियोथेरेपिस्ट ही असली “डॉक्टर” हैं – मेडिकल एलीटिज़्म बंद करो
भारत के Directorate General of Health Services (DGHS) ने एक पूरी प्रोफ़ेशन का अपमान किया है। 9 सितम्बर को जारी नोटिफिकेशन में फिज़ियोथेरेपिस्ट्स को “Dr.” या “PT” लगाने से रोक दिया गया। और विरोध के दबाव में 24 घंटे के अंदर इसे वापस ले लिया। यह न सिर्फ़ शर्मनाक है बल्कि भारत की मेडिकल ब्यूरोक्रेसी का घमंड और पक्षपात भी उजागर करता है।
यह सिर्फ़ “टाइटल” की लड़ाई नहीं है। यह है सम्मान, पहचान और न्याय की लड़ाई।
फिज़ियोथेरेपिस्ट डॉक्टर क्यों हैं?
फिज़ियोथेरेपी कोई छोटी-मोटी ट्रेनिंग नहीं है। यह है 5.5 साल की कड़ी प्रोफ़ेशनल पढ़ाई (BPT), उसके बाद MPT और कई बार PhD/DPT तक। इसमें पढ़ाया जाता है:
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एनाटॉमी
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फिज़ियोलॉजी
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पैथोलॉजी
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न्यूरोलॉजी
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कार्डियोलॉजी
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बायोमैकेनिक्स
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रिहैबिलिटेशन साइंसेज़
तो सवाल है – आख़िर इसमें “डॉक्टर” वाली कमी कहाँ है?
👉 अगर आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी जैसे कोर्स करने वाले “डॉक्टर” कहलाते हैं…
👉 अगर BDS वाले डेंटिस्ट “डॉक्टर” कहलाते हैं…
👉 अगर PhD करने वाले लोग “डॉक्टर” कहलाते हैं…
तो फिज़ियोथेरेपिस्ट्स को क्यों रोका जा रहा है?
यह सीधा-सीधा मेडिकल एलीटिज़्म है।
DGHS का झूठ बेनक़ाब
DGHS कहता है कि फिज़ियोथेरेपिस्ट “डायग्नोस” या “प्राइमरी केयर” नहीं कर सकते।
❌ यह पूरी तरह झूठ है।
फिज़ियोथेरेपिस्ट्स:
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ख़ुद से बीमारियों और डिसऑर्डर का मूल्यांकन और निदान करते हैं।
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ट्रीटमेंट प्लान बनाते और लागू करते हैं।
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दर्द कम करते हैं, गतिशीलता वापस लाते हैं और विकलांगता रोकते हैं।
ये सब वे स्वतंत्र रूप से करते हैं, किसी की “इजाज़त” लेकर नहीं। DGHS का नोटिफिकेशन सच्चाई छुपाने और सिर्फ़ मेडिकल लॉबी को खुश करने का काम है।
दुनिया आगे है, भारत पीछे क्यों?
अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में:
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फिज़ियोथेरेपिस्ट्स को Doctor of Physical Therapy (DPT) कहा जाता है।
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वे गर्व से “Dr.” लिखते हैं।
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वहाँ कोई भ्रम नहीं, कोई अफ़रातफ़री नहीं।
तो भारत ही क्यों फिज़ियोथेरेपिस्ट्स को अपमानित करता है?
मरीज़ों को सच्चाई चाहिए, दबाव नहीं
यह कहना कि “पेशेंट्स कंफ़्यूज़ हो जाएँगे” – मरीज़ों का अपमान है।
लोग समझदार हैं। वे भेद कर सकते हैं:
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Dr. (MBBS/MD) – फ़िज़िशियन/सर्जन
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Dr. (PT) – डॉक्टर ऑफ़ फिज़ियोथेरेपी
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Dr. (BDS) – डेंटिस्ट
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Dr. (PhD) – अकादमिक डॉक्टर
DGHS को रोक-टोक करने की बजाय पारदर्शिता और शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए।
आगे का रास्ता
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क़ानूनी मान्यता – फिज़ियोथेरेपिस्ट्स को “Dr. (PT)” इस्तेमाल करने का हक़ दिया जाए।
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बराबरी का सम्मान – उन्हें “सहायक” नहीं, बल्कि स्वतंत्र हेल्थकेयर प्रोफ़ेशनल माना जाए।
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मेडिकल एलीटिज़्म ख़त्म हो – हेल्थकेयर टीमवर्क है, किसी एक प्रोफ़ेशन की जागीर नहीं।
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जन-जागरूकता – मरीज़ों को साफ़ बताया जाए कि हर “डॉक्टर” की भूमिका क्या है।
निचोड़: DGHS का भेदभाव बर्दाश्त नहीं
DGHS का नोटिफिकेशन फिज़ियोथेरेपिस्ट्स के खिलाफ़ अपमान, अन्याय और पक्षपात है। फिज़ियोथेरेपिस्ट्स डॉक्टर हैं, क्योंकि उन्होंने यह हक़ मेहनत, पढ़ाई और सेवा से कमाया है।
“Doctor” कोई एक प्रोफ़ेशन की जागीर नहीं।
फिज़ियोथेरेपिस्ट्स को इसे अपनाने से रोकना दबंगई नहीं, बेइंसाफ़ी है।